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आजादी की पहली लड़ाई 1857 के शहीदों को दी गई श्रद्धांजलि और अरवल में मार्च निकला गया

मो बरकतुल्लाह राही
अरवल,10मई:आज भाकपा माले  द्वारा ख़भैनी में 1857 के महानायक शहीद बाबू जीवधर सिंह और हेतम सिंह का शिलापट पर पुष्पांजलि करते हुए अरवल में साझी शहादत साझी विरासत के बैनर तले मार्च निकला गया। मार्च का नेतृत्व भाकपा माले जिला सचिव जितेंद्र यादव, राज्य कमेटी सदस्य कॉमरेड रविन्द्र यादव,अखिल भारतीय किसान महासभा के जिला अध्यक्ष कॉम. रामकुमार सिंहा,भाकपा माले करपी प्रखंड सचिव कॉम. मिथलेश यादव,गणेश यादव, बादशाह प्रसाद भाकपा माले जिला कमिटी सदस्य सुऐब आलम, जयनाथ यादव, कामता प्रसाद,जीवधर सिंह के परिवार रमेश सिंह, पारस सिंह संजय सिंह सहित दर्जनों आजादी के दीवाने मार्च में शामिल थे।
मार्च के बाद सभा हुई जिसकी अध्यक्षता भाकपा माले राज्य कमेटी सदस्य रविन्द्र यादव यादव ने किया। मार्च को संबोधित करते हुए जिला सचिव जितेंद्र यादव ने कहा कि 10 में 1857 के दिन मेरठ में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के सिपाहियों ने औपनिवेशिक शासन के खिलाफ ऐतिहासिक विद्रोह शुरू किया था। कंपनी राज उसे सिपाही विद्रोह कहता था लेकिन इतिहास उसे भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में याद करता है। सचमुच वह भारतीय राष्ट्रीय चेतना की पहली शुरुआत थी जिसमें भारतीय उपमहाद्वीप की जनता पहली बार एक साझा दुश्मन के खिलाफ औपनिवेशिक कंपनी राज के खिलाफ धर्म, जाति, समुदाय अथवा भाषा की सीमा लांघते हुए एकताबद्ध हुए थे। उस विद्रोह में किसानों और कारीगरों  की व्यापक भागीदारी ने उसे वास्तविक शक्ति प्रदान की और उसे लोकप्रिय विद्रोह का स्वरूप भी दिया। विद्रोही किसानों ने सूदखोर महाजनों और कुछ ब्रिटिश परस्त जमींदारों अंग्रेजों द्वारा बनाई गई अदालतों, राजस्व कार्यालय, तहसीलों और थानों पर हमले किए। आज भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संगठन आर एस एस  के हिंदू वर्चस्ववादी दृष्टिकोण के अनुसार ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के 75 वें वर्ष के मौके का इस्तेमाल कर मिथ्या धारणा फैलाने के लिए कर रहे हैं कि हिंदू लोग हजारों साल तक मुस्लिम शासन के गुलाम रहे थे ।  1857 का विद्रोह इस मिथ्या विमर्श को चुनौती देता है आखिरकार मुस्लिम शासन के खिलाफ उस किस्म का कोई विद्रोह क्यों नहीं हुआ था? अरवल में गुलाब खां, अमीरुद्दीन खां जीवधर सिंह के साथ लड़ाई लड़े थे । पीर अली समेत कई मुस्लिम योद्धाओं ने अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़े । साझी शहादत एवं साझी विरासत की परंपरा को नफरत की बीज बोने वाले जिनका आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं था आज देशभक्ति का सर्टिफिकेट बांटने में लगे हैं
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