मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जदयू ने इस बार के चुनाव में शानदार वापसी की है। विपक्ष के सत्ता विरोधी लहर का शोर, उम्र और राजनीतिक थकान के साथ ही अपने ही गठबंधन के भीतर कमजोर प्रदर्शन की बातों को झुठलाते हुए नीतीश ने जबरदस्त प्रदर्शन किया है और भाजपा को इस बात के लिए मजबूर कर दिया है कि आखिर किंगमेकर वही हैं और रहेंगे। भाजपा के साथ कदमताल करती हुई जेडीयू 85 सीटों पर आगे बढ़कर एक निर्णायक स्थिति में पहुंच गई है। नीतीश की पार्टी ने जहां 2020 के चुनाव में मात्र 45 सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार उसने बड़ा उलटफेर करते हुए चुनाव में पूरी बाजी ही पलट दी है। इस बार के चुनाव में मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए नीतीश कुमार अपनी सबसे कठिन राजनीतिक परीक्षा से गुजर रहे थे। गठबंधन के सहयोगियों की बातें कि कम सीटें रहते हुए हमने बड़ा दिल दिखाया और नीतीश जी को सीएम बनाया। सीएम का फेस घोषित नहीं करने के बावजूद नीतीश गठबंधन में बने रहे। अपनी नाराजगी भी जताई और साथ चुनाव प्रचार भी नहीं किया। अकेले ही जनता के बीच जाते रहे और अपनी बात रखते रहे। बारिश के कारण जहां तेजस्वी चुनाव प्रचार में नहीं गए, नीतीश बारिश की परवाह किए बिना चुनाव प्रचार करने निकले। नीतीश कुमार की उम्र को लेकर कई तरह की बातें कही गईं। उनके स्वास्थ्य को लेकर तंज कसे गए, उनकी दिमागी हालत को खराब बताया गया। कई तरह की बातें की गईं लेकिन नीतीश अपना काम वैसे ही करते रहे जैसा वे करते आ रहे थे। जनता के बीच सुशासन बाबू के रूप में जाने जाने वाले नीतीश का लगातार गठबंधन बदलने का आरोप लगाते हुए संशय जताया जाता रहा कि वे फिर से पलट जाएंगे। लेकिन जनता ने साबित कर दिया कि वो उनपर कितना भरोसा करती है। इस बार सीट शेयरिंग में भाजपा ने जदयू के साथ 101-101 सीटों पर बराबर सीटों का समझौता किया और ये भी जता दिया कि पीएम मोदी का ब्रांड से काम चल जाएगा और इसे लेकर नीतीश को कम तवज्जो देने की कोशिश की गई लेकिन नीतीश ने इन सबको झुठलाते हुए अपना जादू बिखेरा और पूरा गेम पलट दिया। नीतीश कुमार की स्वच्छ छवि और उनके काम करने का तरीका ही उनकी यूएसपी है। बिहार में उन्होंने जिस तरह से सामाजिक सद्भाव और जातिगत संतुलन के बनाए रखा है, ये जनता जानती है। नीतीश कुमार सभी जातियों और धर्मों को साथ लेकर चलते हैं और इसके साथ ही बिहार की महिला मतदाताओं के बीच काफी मजबूत पकड़ रखते हैं। सत्ता में लगभग दो दशक बाद भी नीतीश की एक मजबूत नेता की छवि बरकरार है और उनकी उम्र, स्वास्थ्य और कथित राजनीतिक थकान को लेकर उठाए गए सवालों के बावजूद बिहार की जनता आज भी उन्हें पसंद करती है। नीतीश का शासन मॉडल उनकी राजनीतिक संगति से ज़्यादा मायने रखता है।
