ePaper

सम्राट चौधरी की जगह दिलीप जायसवाल को बिहार भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया है.

बिहार बीजेपी ने प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी को हटाकर दिलीप जायसवाल को राज्य की कमान सौंपी है. एक साल के भीतर ही प्रदेश अध्यक्ष के पद से सम्राट चौधरी को हटाने का फैसला लेना हैरत भरा जरूर है, लेकिन इसके कयास पहले से लगाये जा रहे थे कि बिहार भाजपा अध्यक्ष के पद पर बदलाव हो सकता है. सवाल यह है कि आखिर सम्राट चौधरी क्यों हटाए गए और दिलीप जायसवाल को ही क्यों चुना गया प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए? हालांकि, सवाल उठाया जा रहा है कि भाजपा के अध्यक्ष का कार्यकाल 3 वर्षों का होता है तो फिर एक साल में ही सम्राट चौधरी क्यों हटा दिए गए. इनके पहले संजय जायसवाल ने अपना कार्यकाल पूरा किया था. इनके बाद सम्राट चौधरी जब मार्च 2023 में बिहार बीजेपी का अध्यक्ष बने थे तब कहा जा रहा था कि वह बिहार में बीजेपी की राजनीति बदलने आए हैं. फिर आखिर क्या ऐसा हुआ जो वह प्रदेश अध्यक्ष से हटाए गए. जानकार पहला कारण तो यह बता रहे हैं कि सम्राट चौधरी को हटना ही था क्योंकि भाजपा में कोई व्यक्ति दो पदों पर नहीं रह सकता. यह एक रूटीन प्रक्रिया है. बिहार भाजपा नेतृत्व में परिवर्तन के बाद सम्राट चौधरी वर्तमान नीतीश सरकार में उपमुख्यमंत्री के रूप में बने रहेंगे. बता दें कि सम्राट चौधरी पहले राजद में थे और फिर जदयू में चले गए और बाद में भाजपा में आ गए. यहां उन्हें उम्मीद से बढ़कर सबकुछ मिला और बिहार भाजपा संगठन के शीर्ष तक पहुंच गए. हालांकि, सवाल तो यह पूछा जा रहा है कि ऐसा क्या हुआ जो अचानक हटा दिये गए. जानकार कहते हैं कि लोकसभा चुनाव के नतीजे में बिहार और कुशवाहा वोट बैंक में विपक्ष की सेंधमारी ने सम्राट चौधरी के लिये भाजपा के सामने मुश्किल खड़ी कर दी थी. वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि सम्राट चौधरी को पद से हटाए जाने का मुख्य कारण लोकसभा चुनाव का नतीजा ही रहा है. लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने उम्मीद के अनुरूप प्रदर्शन नहीं किया और 17 में केवल 12 संसदीय सीट ही जीत सकी थी. भाजपा से अच्छा प्रदर्शन जदयू का रहा जिसने 16 सीटें लड़कर 12 सीटों पर जीत प्राप्त की थी. भाजपा के खराब प्रदर्शन के पीछे कुशवाहा मतदाताओं का सम्राट चौधरी के साथ खड़ा नहीं रहना बताया जा रहा है. इसमें लालू यादव का दांव कारगर साबित हुआ और महागठबंधन के दो जबकि एनडीए से महज एक कुशवाहा सांसद सदन पहुंचे. बता दें कि राजाराम सिंह कुशवाहा काराकाट लोकसभा सीट से भाकपा माले के टिकट पर तो औरंगाबाद संसदीय सीट से अभय सिंह आरजेडी के टिकट पर जीत कर संसद पहुंचे हैं. वहीं, जदयू के टिकट पर सीवान से विजय लक्ष्मी सांसद बनने में सफल रहीं. बीते लोकसभा चुनाव के संदर्भ में यह बताया जा रहा है कि सम्राट चौधरी अपनी जाति, जो बिहार की आबादी में 4.5 प्रतिशत हिस्सा रखता है, उसको गोलबंद नहीं कर पाए और इस वोट बैंक का अधिकांश हिस्सा राजद की ओर शिफ्ट हो गया. हालत हो गई कि इस जाति के कद्दावर कहे जाने वाले उपेंद्र कुशवाहा तक काराकाट से चुनाव हार गए. अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि एक कल तक नीतीश कुमार के नाम पर गोलबंद रहने वाले कुशवाहा वोट में महागठबंधन की सेंधमारी तो वहीं दूसरी ओर वैश्य समाज पर भी लालू यादव की रणनीति ने भाजपा को दिलीप जायसवाल को अध्यक्ष बनाने की राह बनाई. दरअसल, राजद अध्यक्ष लालू यादव कुशवाहा वोटरों को अपने पाले में करने के साथ ही वैश्य समाज को अपने साथ लाने की रणनीति पर बड़ी शिद्दत से आगे बढ़ रहे हैं. छपरा में बड़ा वैश्य सम्मेलन किया जाना इसी की एक कड़ी थी. इसके बाद शिवहर से राजपूत समाज की लवली आनंद के समक्ष तेज तर्रार रितु जायसवाल को टिकट देना इसी रणनीति का हिस्सा रहा.

Instagram
WhatsApp