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दिल्ली हाई कोर्ट की समान नागरिक संहिता की मांग पर लॉ कमीशन के पास जाने की सलाह

नई दिल्ली, 01 दिसंबर 

दिल्ली हाई कोर्ट ने समान नागरिक संहिता की मांग करने वाले याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि वो लॉ कमीशन के पास जाएं। हाई कोर्ट के इस आदेश के बाद याचिकाकर्ता और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने याचिका वापस ले ली।

इसके पहले भी अप्रैल में हाई कोर्ट ने अश्विनी उपाध्याय से कहा था कि प्रथम दृष्टया आपकी याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। कोर्ट ने कहा था कि हमें ये देखना है कि याचिका सुनवाई योग्य है कि नहीं। सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट को ये सूचित किया गया था कि मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने अश्विनी उपाध्याय की सभी धर्मों में तलाक, बच्चा गोद लेने और वसीयत की एक समान व्यवस्था की मांग पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कानून बनाना संसद का अधिकार है। हम इस पर आदेश नहीं दे सकते हैं।

मई 2019 में हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। केंद्र सरकार ने इस मामले में हलफनामा दायर कर कहा था कि समान नागरिक संहिता को लागू करना संविधान के नीति निर्देशक तत्व के तहत नीतिगत मामला है और इसे लागू करने के लिए कोर्ट दिशा-निर्देश जारी नहीं कर सकती है। केंद्र सरकार के हलफनामे में कहा गया था कि कानून को लागू करने का सार्वभौम अधिकार संसद को है। इसके लिए कोई दूसरा पक्ष संसद को निर्देश जारी नहीं कर सकता है।

केंद्र सरकार ने कहा था कि इस मसले पर विस्तृत अध्ययन करने की जरूरत है। केंद्र सरकार ने लॉ कमीशन से आग्रह किया है कि वो विभिन्न समुदायों के लिए पर्सनल लॉ का अध्ययन कर जरुरी अनुशंसा करे।

अश्विनी उपाध्याय की याचिका में कहा गया था कि संविधान की धारा 14, 15 और 44 की भावना को ध्यान में रखते हुए देश के सभी लोगों पर समान आचार संहिता लागू करने के लिए दिशा-निर्देश दिया जाए। याचिका में कहा गया था कि गोवा में कॉमन सिविल कोड 1965 से लागू है । ये कोड गोवा के हर नागरिक पर लागू होता है। गोवा ही ऐसा राज्य है जहां एक समान कानून है।

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