मेरठ, 15 जनवरी
छह दिसम्बर 1992 को अयोध्या धाम में विवादित ढांचे के विध्वंस को लाखों कारसेवकों ने अपनी आंखों से देखा था। इनमें मेरठ के करुणेश नंदन गर्ग भी उस घड़ी के साक्षी है। करुणेश आज भी उस दृश्य को याद करते हैं और अब श्रीराम मंदिर निर्माण के भी साक्षी बनकर खुद को धन्य मान रहे हैं।
मेरठ में भाजपा के पूर्व महानगर अध्यक्ष करुणेश नंदन गर्ग ने 1982 से 1992 तक हुए श्रीराम मंदिर आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की। आंदोलन में कारसेवा करने के लिए करुणेश ने मेरठ से अयोध्या का सफर कई बार तय किया। छह दिसम्बर 1992 को अयोध्या में हुई घटना के समय करुणेश उपस्थित रहे।
करुणेश बताते हैं कि संगठन में तय कर लिया गया था कि अयोध्या कौन-कौन जाएगा। इसके लिए 25 नवम्बर को ही मेरठ से कारसेवक लखनऊ पहुंच गए। लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन पर केवल कारसेवक ही थे। वहां से अयोध्या के लिए चली ट्रेन भी पूरी तरह से कारसेवकों से भरी हुई थी। अयोध्या पहुंचने पर पहले तो मंदिरों के दर्शन किया गया। इसके बाद चार दिसम्बर को घोषणा हुई कि पांच दिसम्बर को सभी मुट्ठी में रेत लाकर जन्मभूमि मंदिर परिसर के पास खाई में डालेंगे। छह दिसम्बर को भी यही किया जाएगा और इसके बाद सभी वापस चले जाएंगे।
मन में पनप रहा था आक्रोश
करुणेश नंदन गर्ग के अनुसार, रेत डालने की बात से कारसेवकों के मन में आक्रोश पनप रहा था। उनका साफ कहना था कि वे यहां पर रेत डालने नहीं आए हैं। सभी ने विद्रोह की तैयारी कर ली। छह दिसम्बर को सरयू में स्नान के बाद मुट्ठी में रेत लेकर सभी कतार में लग गए। साढ़े नौ बजे कारसेवक आगबबूला हो गए और वहां भगदड़ गच गई। इसके बाद विवादित ढांचे को तोड़ा जाने लगा। चारों ओर जय श्रीराम का जयघोष गूंज रहा था। दोपहर बार सवा चार बजे तक तीसरा गुंबद भी गिरा दिया गया। मलबा खाई में डाल दिया गया।
हजारों रामभक्तों को जेल भेजा गया
करुणेश बताते हैं कि श्रीराम मंदिर आंदोलन के दौरान लाखों कारसेवकों ने तरह-तरह की यातनाएं सही। लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा को बिहार में रोकने के बाद जेल भरो आंदोलन चलाया गया। इसके बाद मेरठ में भी हजारों रामभक्तों को पुलिस ने गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया। वह खुद मुजफ्फनगर जनपद के जानसठ में बनाई गई अस्थायी जेल में बंद थे। वहां भी जय श्रीराम का जयघोष गुंजायमान रहता था।