दिव्यांग लोगों की चाहत होती है कि वो नकली पैर खरीद सकें, इसको लगाने से भी लोगों की काफी मदद हो जाती है. साथ ही वो कई चीजें खुद से कर सकते हैं. यह पैर काफी महंगे आते हैं. लेकिन अब डीआरडीएल और एम्स ने मिलकर इस समस्या का समाधान कर दिया है. अब भारत में ही नकली पैर बनाया गया है. जिससे कई लोगों की मदद होगी और वो कम लागत में ही इसको खरीद सकेंगे. डीआरडीओ की रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला (डीआरडीएल) और एम्स बीबीनगर ने मिलकर स्वदेशी रूप से पहला मेक-इन-इंडिया कार्बन फाइबर फुट प्रोस्थेसिस (नकली पैर) लॉन्च किया गया है. 14 जुलाई को इसको लॉन्च किया गया. यह पूरी तरह से भारत में बना है सस्ता और उन्नत है. एम्स बीबीनगर, तेलंगाना में इसको लॉन्च किया गया. एम्स बीबीनगर – डीआरडीएल, डीआरडीओ ने मिलकर स्वदेशी रूप से इसको तैयार किया है. यह आत्मनिर्भर भारत पहल के तहत एक बड़ी सफलता है. इसको डीआरडीएल के वैज्ञानिक और निदेशक डॉ जीए श्रीनिवास मूर्ति और कार्यकारी निदेशक, एम्स बीबीनगर डॉ अहंतेम सांता सिंह ने लॉन्च किया. ADIDOC यानी एक कार्बन फाइबर आधारित नकली पैर है जो इतनी शक्ति रखता है कि यह 125 किलो वजन उठा सकता है. इसके लिए इसका बायोमैकेनिकल टेस्ट किया गया है. अलग-अलग वजन के लोगों की मदद के लिए इसके तीन तरह के वेरिएंट तैयार किए गए हैं. जिससे सभी तरह के वजन के लोग इससे फायदा उठा सकें. इस फुट को अच्छी क्वालिटी और किफायती समाधान देने के लिए डिजाइन किया गया है. जिससे जरूरतमंद लोगों की एक बड़ी संख्या को यह उपलब्ध हो सके और बड़ी संख्या में लोग इसका फायदा उठा सके. साथ ही यह उपलब्ध अंतरराष्ट्रीय मॉडलों के बराबर काम करता है. उम्मीद है कि इससे प्रोडक्शन की लागत में कमी आएगी और यह लगभग 20 हजार रुपये से भी कम हो जाएगी, जबकि वर्तमान में इम्पोर्ट समान उत्पादों की लागत लगभग दो लाख रुपये है. इस तरह, इस इनोवेशन से भारत में लॉ इनकम वर्ग के विकलांगों के लिए अच्छी क्वालिटी वाला पैर पहुंचना आसान होगा. इससे उनकी मदद होगी. आयातित तकनीकों पर निर्भरता में कमी आएगी. दिव्यांगजनों के व्यापक सामाजिक एवं आर्थिक समावेशन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है.
